पट्टी खाटली, जिला पौड़ी गढ़वाल के उत्तराखंड राज्य की सबसे बड़ी पट्टी के नाम से विख्यात है। इसमें 36 ग्राम सभाऍ (लगभग 104 गॉव) समहित है। पट्टी के बीचो-बीच से ‘खटलगढ़’ नामक प्रसिद्ध नदी बहती है जो पूर्व में दूधातोली पर्वत से निकलकर पश्चिम दिशा में (दुनाव में) पूर्वी नयार में मिलती है। इसी नदी के नाम से पट्टी का नाम ‘खाटली’ पड़ा। वर्तमान में यह नदी खाटली के लिए कोई अधिक महत्व नही रखती परन्तु भविष्य में यदि उत्तराखंड सरकार पट्टी खाटली के चहुमुखी विकास की ओर ध्यान दे तो इन नदियों से सिचाई, पेयजल योजनायें व जल परियोजनाये तैयार की जा सकती है । दीवा डांडा, रसिया महादेव, गुजिया महादेव, दुनाव, बीरोंखाल व मैठाणाघाट यहॉ के धार्मिक एवं प्रमुख व्यापार स्थान है।
दीवाडॉडा की सबसे ऊंची चोटी पर खाटली दीवा (दुर्गा ) का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। जो कि आज हमारी आस्था का प्रतीक है। किवंदतियाँ है कि पूर्वकाल में मॉ भगवती संकट के समय खाटली वासियों को दुश्मनो से सजग रहने का संदेश देती थी। यह स्थान पर्यटन के लिए भी महत्व रखता है।
खाटली के अधिकतर नौजवान सशस्त्र सेनाओं में रहते हुए देश की सुरक्षा व्यवस्था में कार्यरत है। यहॉ के लगभग 10 प्रतिशत लोग सरकारी , 30 प्रतिशत लोग गैर – सरकारी, 2 प्रतिशत लोग निजी व्यवसाय एवं अन्य खेती- वाड़ी से अपनी अजीविका का निर्वाह करते है। उच्च शिक्षा के अभाव में या कालेज गावो से दूर होने के कारण अधिकतर बच्चे 10 वी या 12 वी तक ही शिक्षा पाते है। यहां पर खेत सीढी नुमा एवं ऊंचे-नीचे होते है।
खेती पूर्ण रूप से वर्षा पर निर्भर होती है । धान, झंगोरो, मंडुवा, गेहूं, मक्का, कोणी, , गैथ व भट्ट-मास, रयांस आदि यहां के मुख्य अनाज है। बाँज, बुरांस, अंयार, काफल, चीड, साल-सागौन, भ्यूल, खाड़क, पदम, यहाँ के मुख्य पेड़ है, भूमि पथरीली व उबड-खाबड़ होने के कारण यहॉ पर कंटीली झाड़ियाँ अधिक उगती है जिनका उपयोग आयुर्वेद में किया जा सकता है। फलों में सेब, आम, आडू़, खुवानी, अखरोट, नीम्बू, मौसमी, नारंगी,, अमरूद, तिमला आदि फलदार पेड़ है। यहॉ के मुख्य पशुधन में गाय, भैस, बैल, भेड़, बकरी आदि है।
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