महर्षि वेदव्यास की एक विख्यात उक्ति है:
"त्रेतायां मंत्रशक्तिश्च, ज्ञानशक्ति: कृते युगे। द्वापरे युद्ध शक्तिश्च, संघ शक्ति कलौयुगे।।"
अर्थात : त्रेता युग में मंत्र शक्ति, सत्य युग में ज्ञान शक्ति तथा द्वापर युग मे युद्ध शक्ति प़मुख बल था किन्तु कलयुग मे संगठन की शक्ति ही प़धान है।
गढ़वाल पट्टी खाटली सामाजिक विकास मंडल (पंजी) दिल्ली का भारत की आजादी से गहरा संबंध है| जब कर्मठ समाजसेवी और देशभक्तों के अथक प्रयास से हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ तो अंग्रेज जाते – जाते देश तो दो भागों में विभाजित कर गये – हिंदुस्तान और पाकिस्तान| पाकिस्तान से हमारे लोग स्वदेश आने लगे| जिसके फलस्वरूप खाटलीवासी भी अधिक मात्रा में देश की राजधानी दिल्ली में ही प्रवास करने लग गये| इस प्रकार से खाटली वासियों का परस्पर मेल-जोल होने लगा| इस अपनत्व की भावनाओं के कारण दिल्ली में प्रतिवर्ष श्री सत्यनारायण कथा का आयोजन एवं प्रतिभोज भी होने लगा| इस अन्तराल में खाटली के कुछेक बुद्धिजीवियों ने अनुभव किया कि आज से इस प्रगतिशील युग में हमें भी पट्टी स्तर पर एक संस्था का गठन करना चाहिए, जिसके माध्यम से हम पट्टी की सुख-सुविधाओ के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों से समय एवं आवश्यकताओं के अनुसार निवेदन कर सके|
इस संस्था (मंडल) की स्थापना धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक भावनाओं के अनुरूप ही हुई। सन 1949 में मंडल का गठन विधिवत ‘गढ़वाल पट्टी खाटली सामाजिक विकास मंडल (पंजीकृत) दिल्ली‘ के नाम से हुआ। जिसमें मुख्य रूप से पट्टी के चहुंमुखी विकास के प्रमुख उदेश्यों को निर्धारित किया गया। जिसके अनुसार मंडल, पट्टी के विकास, जन सुख-सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, संचार, पेयजल एवं बिजली आदि के लिए संबंधित सरकारों से समय-समय पर अनुरोध करता रहा है|
खाटली के अराघ्य दीवा (दुर्गा) मॉ का मंदिर उस समय के केन्द्रीय स्थान किदवई नगर, नई दिल्ली में 1974 में स्थापित किया गया, परन्तु कुछ असामाजिक तत्वों ने मंदिर को खंडित कर दिया जो कि प्रवासीजनों के लिए एक मान सम्मान का विषय बना।
उस समय प्र प्रवासीजनों में जो अपनत्व की भावना प्रकट हुई उसके आधार पर पुनः 21 जून 1974 को मंदिर निर्माण का कार्य आरम्भ होकर 23 जुलाई 1975 को मॉ दीवा का मंदिर, नई मूर्ति की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कर भक्तों के लिए दर्शनार्थ नियमित रूप से उपलब्ध हुई ।
21 अप्रैल 2013 को आध्यात्म गुरू श्री भोले महाराज और माता श्री मंगला जी (हंस लोक) के द्वारा इस मंदिर का नवीनीकरण कराया गया। मंदिर में वर्तमान में मां दीवा (दुर्गा), श्री गणेश, श्री हनुमान, श्री राम परिवार, राधा कृष्ण, महादेव भोले शंकर, शिव परिवार (शिवलिंग सहित), भैरो नाथ, शनि भगवान, नवग्रह और श्री साईनाथ महाराज की मूर्तियां विराजमान है। मंदिर में सत्संग...
सज्जनों यद्यपि दिल्ली खाटली प़वासी बन्धुओं को संगठित करने की नींव सन् 1934 में प़थम सामुहिक 'सत्यदेव पूजन' के आयोजन से पड़ गई थी, किन्तु देश-काल की विपरीत घटनाओं एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते इस कार्य को उचित मूर्तरूप नहीं दिया जा सका, फिर भी प़वासी बन्धुओं का आपसी मेलजोल, नये लोगों का जुड़ाव दिनों दिन बढ़ता गया तथा सन् 1934 से 1944 तक सामुहिक रूप से 'सत्यदेव पूजन' का आयोजन बड़े हर्षोल्लास के साथ होता रहा।
सन् 1945 के दौरान जब देश आजादी का संघर्ष चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका था और ऐसे समय फिर एक बार देश में खाद्यान्न संकट उत्पन हो गया। जिसका असर खाटली की एकता पर भी देखने को मिलता है। परिणामस्वरूप सन् 1945 से 1948 तक सत्यदेव पूजन नहीं मनाया जा सका।
"कहते हैं - जहां चाह वहां राह।"
देश विभाजन के उपरान्त उपजे सांप्रदायिक दंगों में कई निरीह लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़े। 'दीवा माता' की असीम अनुकम्पा से खाटली के बन्धु अन्यत्र शहरों (पाकिस्तान) से दिल्ली सुरक्षित पहुंचे। पट्टी के सभी बन्धुओं का सुरक्षित पहुंचने तथा साम्प्रदायिक सद्भाव बन जाने के पश्चात सभी पट्टी प़वासी बन्धुओं ने पुनः 'सत्यदेव पूजन' आयोजित करने का निर्णय लिया। ऐसे ही शुभ अवसर पर दूरदर्शी, सामाजिक भावना से ओत-प्रोत, बुद्धिजीवी वर्ग ने 2 फरवरी,1949 को इस संगठन को संस्था के रूप में परिवर्तित करने का निर्णय लिया, जिसकी परिणीति "पट्टी खाटली सामाजिक विकास मण्डल" के रूप मे हुई।
"स्वामी विवेकानंद तो संगठन की अवधारणा पर ही मुग्ध थे। उन्होंने पाश्चात्य जगत के संगठन क्षमता की अत्यंत प़संशा भी की है।
"खाटली सामा० विका० मण्डल, दिल्ली" का मुख्य उद्देश्य "खाटली प़वासी बन्धुओं को एक सूत्र मे पिरोकर संगठित करना तथा सामुहिक रूप से पट्टी खाटली का चहुंमुखी विकास करना है।" देश और पट्टी खाटली के हितों की रक्षा, खेल, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, कृषि, यातायात, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, सहकारिता एवं आपसी प्रेम-सद्भाव…
पट्टी खाटली, जिला पौड़ी गढ़वाल के उत्तराखंड राज्य की सबसे बड़ी पट्टी के नाम से विख्यात है। इसमें 36 ग्राम सभाऍ (लगभग 104 गॉव) समहित है। पट्टी के बीचो-बीच से ‘खटलगढ़’ नामक प्रसिद्ध नदी बहती है जो पूर्व में दूधातोली पर्वत से निकलकर पश्चिम दिशा में (दुनाव में) पूर्वी नयार…
पट्टी खाटली, जिला पौड़ी गढ़वाल के उत्तराखंड राज्य की सबसे बड़ी पट्टी के नाम से विख्यात है। इसमें 36 ग्राम सभाऍ (लगभग 104 गॉव) समहित है। पट्टी के बीचो-बीच से ‘खटलगढ़’ नामक प्रसिद्ध नदी बहती है जो पूर्व में दूधातोली पर्वत से निकलकर पश्चिम दिशा में (दुनाव में) पूर्वी नयार में मिलती है। इसी नदी के नाम से पट्टी का नाम ‘खाटली’ पड़ा। वर्तमान में यह नदी खाटली के लिए कोई अधिक महत्व नही रखती परन्तु भविष्य में यदि उत्तराखंड सरकार पट्टी खाटली के चहुमुखी विकास की ओर ध्यान दे तो इन नदियों से सिचाई, पेयजल योजनायें व जल परियोजनाये तैयार की जा सकती है । दीवा डांडा, रसिया महादेव, गुजिया महादेव, दुनाव, बीरोंखाल व मैठाणाघाट यहॉ के धार्मिक एवं प्रमुख व्यापार स्थान है।
दीवाडॉडा की सबसे ऊंची चोटी पर खाटली दीवा (दुर्गा ) का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। जो कि आज हमारी आस्था का प्रतीक है। किवंदतियाँ है कि पूर्वकाल में मॉ भगवती संकट के समय खाटली वासियों को दुश्मनो से सजग रहने का संदेश देती थी। यह स्थान पर्यटन के लिए भी महत्व रखता है।
खाटली के अधिकतर नौजवान सशस्त्र सेनाओं में रहते हुए देश की सुरक्षा व्यवस्था में कार्यरत है। यहॉ के लगभग 10 प्रतिशत लोग सरकारी , 30 प्रतिशत लोग गैर - सरकारी, 2 प्रतिशत लोग निजी व्यवसाय एवं अन्य खेती- वाड़ी से अपनी अजीविका का निर्वाह करते है। उच्च शिक्षा के अभाव में या कालेज गावो से दूर होने के कारण अधिकतर बच्चे 10 वी या 12 वी तक ही शिक्षा पाते है। यहां पर खेत सीढी नुमा एवं ऊंचे-नीचे होते है।
खेती पूर्ण रूप से वर्षा पर निर्भर होती है । धान, झंगोरो, मंडुवा, गेहूं, मक्का, कोणी, , गैथ व भट्ट-मास, रयांस आदि यहां के मुख्य अनाज है। बाँज, बुरांस, अंयार, काफल, चीड, साल-सागौन, भ्यूल, खाड़क, पदम, यहाँ के मुख्य पेड़ है, भूमि पथरीली व उबड-खाबड़ होने के कारण यहॉ पर कंटीली झाड़ियाँ अधिक उगती है जिनका उपयोग आयुर्वेद में किया जा सकता है। फलों में सेब, आम, आडू़, खुवानी, अखरोट, नीम्बू, मौसमी, नारंगी,, अमरूद, तिमला आदि फलदार पेड़ है। यहॉ के मुख्य पशुधन में गाय, भैस, बैल, भेड़, बकरी आदि है।
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